सुप्रीम कोर्ट ने SC/ST आरक्षण में क्रीमी लेयर लागू करने की याचिका स्वीकार की: क्या होगा असर?

सुप्रीम कोर्ट ने SC/ST आरक्षण में क्रीमी लेयर लागू करने की याचिका स्वीकार की: क्या होगा असर?

भारत में आरक्षण हमेशा से एक संवेदनशील और बहस का विषय रहा है। हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण याचिका स्वीकार की है, जिसमें SC/ST आरक्षण में भी क्रीमी लेयर का सिद्धांत लागू करने की मांग की गई है। अब तक क्रीमी लेयर केवल OBC वर्ग में लागू होती थी, लेकिन यदि यह SC/ST में भी लागू होती है तो इसका दूरगामी कानूनी और सामाजिक असर होगा।


क्रीमी लेयर क्या है?

"क्रीमी लेयर" का अर्थ है – किसी जाति या वर्ग के वे लोग जो आर्थिक और सामाजिक रूप से काफी सशक्त हो चुके हैं। यानी जिनके पास पर्याप्त नौकरी, पद और संपन्नता है। वर्तमान में यह प्रावधान केवल OBC आरक्षण में लागू है। इसका उद्देश्य यह है कि आरक्षण का लाभ वास्तव में पिछड़े और वंचित तबकों तक पहुँचे।


सुप्रीम कोर्ट का रुख

सुप्रीम कोर्ट ने इस याचिका को सुनवाई के लिए स्वीकार कर लिया है। इसका मतलब यह है कि अदालत अब इस पर विचार करेगी कि क्या SC/ST आरक्षण में भी यह सिद्धांत लागू होना चाहिए। हालांकि अभी कोई अंतिम निर्णय नहीं आया है।


संभावित कानूनी असर

  • संवैधानिक व्याख्या: संविधान के अनुच्छेद 15(4), 16(4) और 335 से जुड़ा यह मामला बड़े बदलाव ला सकता है।
  • नीतिगत सुधार: यदि कोर्ट सहमत होता है, तो सरकार को आरक्षण संबंधी नीतियों और नियमों में संशोधन करना होगा।
  • समानता का प्रश्न: आर्थिक और सामाजिक रूप से मजबूत लोग अगर आरक्षण लेते हैं तो समानता के अधिकार (Article 14) पर सवाल खड़े होते हैं।

सामाजिक असर

  • वंचित तबके को लाभ: इससे SC/ST समाज के गरीब और वास्तव में पिछड़े वर्गों को आरक्षण का फायदा मिल सकेगा।
  • असंतोष की संभावना: संपन्न वर्ग जो अब तक इसका लाभ ले रहा था, वह इसका विरोध कर सकता है।
  • समानता की दिशा में कदम: आरक्षण अपने वास्तविक उद्देश्य की ओर लौटेगा।
  • राजनीतिक प्रभाव: यह मुद्दा दलित राजनीति और चुनावी समीकरणों पर गहरा असर डाल सकता है।

निष्कर्ष

सुप्रीम कोर्ट का यह कदम भारतीय न्याय व्यवस्था और समाज दोनों के लिए ऐतिहासिक साबित हो सकता है। यदि SC/ST आरक्षण में भी क्रीमी लेयर लागू होती है, तो यह उन गरीब और वंचित परिवारों के लिए बड़ी राहत होगी, जिन्हें अब तक बराबरी के मौके नहीं मिल पाए थे। हालांकि, इसके विरोध और सामाजिक तनाव की संभावना से भी इनकार नहीं किया जा सकता।

👉 अब देखना होगा कि सुप्रीम कोर्ट इस पर क्या अंतिम फैसला देता है और यह भारत की सामाजिक न्याय व्यवस्था को किस दिशा में ले जाता है।

 

Post a Comment

Previous Post Next Post