भारत के कायस्थ समुदाय: एक व्यापक शोध रिपोर्ट
मूल, पहचान और उत्पत्ति कथाएँ
कायस्थ समुदाय की पहचान भारतीय सामाजिक और राजनीतिक इतिहास में एक जटिल, विरोधाभासी और विकसित प्रक्रिया से जुड़ी हुई है। यह समुदाय अपने ऐतिहासिक भूमिका, मान्यताओं और सामाजिक अभियानों के माध्यम से अपनी पहचान को स्थापित करता आया है। इसकी उत्पत्ति का अध्ययन करने पर पता चलता है कि कायस्थ एक 'जाति' (caste) के रूप में नहीं, बल्कि एक 'व्यवसायी वर्ग' (professional class) के रूप में उत्पन्न हुआ था
। इस व्यवसायी वर्ग ने समय के साथ अपनी सामाजिक संरचना को मजबूत किया और अंततः एक विशिष्ट जाति के रूप में विकसित हो गया। शब्द 'कायस्थ' का उद्गम संस्कृत के 'काय' (शरीर) और '-स्थ' (खड़ा होना) से हुआ है, जिसका अर्थ एक 'राजस्व अफसर' या 'राजकीय खजांची' के रूप में है । उनकी भूमिका मूल रूप से लेखन, लेखा-जोखा, राजनीति और न्याय की थी । यह व्यवसाय राज्य यंत्र, कठिन कर प्रणालियों और भूमि-दान प्रथाओं के विकास के साथ-साथ उभरा । गुप्त काल (442 CE) के एक अभिलेख में 'प्रथम कायस्थ' (प्रधान अधिकारी) के रूप में उनका उल्लेख किया गया था, जो उनकी ऊंची स्थिति को दर्शाता है । मुद्राराक्षस नाटक में उनका उल्लेख एक अनुच्च छवि में किया गया है, जहां वे वहां काम करते हैं जहां पैसा मिलता है, जो एक गुट के रूप में उनकी प्रारंभिक भूमिका को दर्शाता है
।
कायस्थ समुदाय की पहचान अपनी एक विशिष्ट आध्यात्मिक और मान्यता-आधारित उत्पत्ति के साथ मजबूत हुई। सबसे प्रमुख मान्यता यह है कि वे देवी यमराज के लिए कर्मों की रिकॉर्डिंग करने वाले देवता चित्रगुप्त के वंशज हैं
। इसका नाम 'कायस्थ' उनके नाम के शरीर ('kaya') से लिया गया है, जो उनकी मूल भूमिका को दर्शाता है । वे अपने आप को एक ऐसी जाति मानते हैं जो यमराज की तरह कर्म की जिम्मेदारी वाली है । चित्रगुप्त के बारह बेटों से ब्रह्म कायस्थों की द्वादश शाखाएं उत्पन्न हुईं, जिनमें स्रिवास्तव, सक्सेना, भट्टनागर, अम्बाष्ठा, आस्थाना आदि प्रमुख हैं । यह एक शाखा-आधारित संरचना बनाता है जो उनकी सामाजिक और पारंपरिक संरचना को प्रभावित करती है। एक अन्य मान्यता के अनुसार, चित्रगुप्त के दो पत्नियाँ, शोभावती और नंदिनी, थीं, और उनके बीच बारह पुत्र हुए, जिनके नामों से उनकी शाखाएँ बनीं
. इस उत्पत्ति कथा के आधार पर, कायस्थ अपने आप को एक विशिष्ट और आदर्श वंश के प्रतिनिधि मानते हैं।
कायस्थ समुदाय की पहचान एक अद्वितीय सामाजिक और आध्यात्मिक अभ्यास द्वारा और भी मजबूत होती है, जिसे चित्रगुप्त पूजा (Chitragupta Puja) या कलम-दवात पूजा के रूप में जाना जाता है
। यह एक अनूठा उत्सव है जहां पेन, कलम और किताबों का विशेष रूप से आदर किया जाता है । यह उनके व्यवसायी और ज्ञान-संरक्षक भूमिका का एक शक्तिशाली प्रतीक है और इसे दीवाली के दो दिन बाद, भाई दूज के दिन मनाया जाता है । यह पूजा उनके व्यवसाय के प्रति अपनी समर्पण का प्रतीक है और उनकी पहचान को दृढ़ करती है। कायस्थ समुदाय अपने आप को वर्ण व्यवस्था से परे या 'निर्वर्ण' मानते हैं, जो उनकी विशिष्ट सामाजिक स्थिति को दर्शाता है । वे अक्सर अपनी भूमिका को ब्राह्मण-क्षत्रिय संयोजन के रूप में वर्णित करते हैं, जो उनके दोहरे स्वरूप को दर्शाता है । इस पहचान को मजबूत करने के लिए, वे अपने आप को एक सामाजिक-सांस्कृतिक समूह के रूप में वर्णित करते हैं, जो वर्ण व्यवस्था से बाहर है । उनके गोत्र का समकक्ष 'खस घर' है, जो ब्राह्मणीय गोत्रों से अलग है और ऋषि रेखाओं से जुड़ा नहीं है
।
कायस्थ समुदाय की विविधता उनकी विभिन्न उप-जातियों और क्षेत्रीय समूहों के कारण है, जो उनकी सामाजिक संरचना को और भी जटिल बनाती है। यह समुदाय तीन प्रमुख क्षेत्रीय समूहों में विभाजित है: चित्रगुप्तवंशी कायस्थ (हिंदी घाटी और दक्षिण भारत), छंद्रसेनिया कायस्थ प्रबु (महाराष्ट्र, गुजरात और अंडमान और निकोबार द्वीप), और चित्रसेनिया कायस्थ (पूर्वी भारत, बंगाल, असम, त्रिपुरा, ओडिशा)
। प्रत्येक समूह की अपनी विशिष्ट उत्पत्ति कथा, संस्कृति और सामाजिक प्रथाएँ हैं। उत्तर भारतीय चित्रगुप्तवंशी कायस्थों के द्वादश शाखाएँ हैं, जिनमें स्रिवास्तव, सक्सेना, भट्टनागर, अम्बाष्ठा, आस्थाना, बालमीक, मथुर, कुलश्रेष्ठ, सूर्यध्वज, कारण, गौर और निगम प्रमुख हैं । इन शाखाओं के अंदर और अंतर्गत भी उप-शाखाएँ हैं, जैसे स्रिवास्तवों के खरे और दूसरे खंड । बंगाली कायस्थों का विभाजन अलग है; वे दो मुख्य श्रेणियों में विभाजित हैं: कुलिन (उच्च श्रेणी) और मौलिक (मूल) । कुलिन कायस्थों को उनकी उच्च सामाजिक स्थिति के लिए जाना जाता है, जो उनके कुलिनवाद की प्रथा से जुड़ी है, जिसमें उनकी उत्पत्ति का दावा कन्नौज से किया जाता है । छंद्रसेनिया कायस्थ प्रबु (CKP) महाराष्ट्र के कायस्थ समुदाय का एक विशिष्ट समूह है, जो युद्धकुशल क्षत्रियों के वंशज होने का दावा करते हैं और वे उपनयन जैसे ब्राह्मण अनुष्ठान करते हैं, जो उनकी अलग पहचान को दर्शाता है । ओडिशा में, कायस्थों को कारन के रूप में जाना जाता है और वे ब्राह्मणों के बाद सबसे ऊंची जाति माने जाते हैं
। ये विभिन्न समूह और उप-जातियाँ भारत के विभिन्न हिस्सों में अपनी अनोखी पहचान और संस्कृति बनाए हुए हैं, जो कायस्थ समुदाय की विविधता को दर्शाती है।
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चित्रगुप्तवंशी कायस्थ |
उत्तर भारत (उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश) |
द्वादश शाखाओं का आधार, चित्रगुप्त से उत्पत्ति की मान्यता, उच्च शिक्षा की संस्कृति |
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छंद्रसेनिया कायस्थ प्रबु (CKP) |
महाराष्ट्र, गुजरात |
क्षत्रिय उत्पत्ति का दावा, उपनयन का अनुष्ठान, ब्राह्मणों के समान उच्च रूढ़िवादी स्थिति |
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बंगाली कायस्थ |
पूर्वी भारत (पश्चिम बंगाल, बिहार, ओडिशा, असम) |
कुलिन और मौलिक श्रेणी, कुलिनवाद की प्रथा, बंगाली साहित्य और संस्कृति में महत्वपूर्ण योगदान |
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कारन (ओडिशा) |
ओडिशा |
ब्राह्मणों के बाद सबसे ऊंची जाति, राजनीतिक और सांस्कृतिक इतिहास में महत्वपूर्ण भूमिका, उच्च साक्षरता दर |
इस प्रकार, कायस्थ समुदाय की पहचान एक गहराई से जड़ी हुई है, जो उनके ऐतिहासिक भूमिका, आध्यात्मिक उत्पत्ति कथाओं, सांस्कृतिक प्रथाओं और विभिन्न क्षेत्रों में उनकी विशिष्ट स्थिति को दर्शाती है। यह समुदाय एक विविध और जटिल संरचना रखता है, जो उसकी शक्ति और जटिलता को दर्शाती है।
ऐतिहासिक भूमिका: शासन और प्रशासन की विरासत
कायस्थ समुदाय का इतिहास भारतीय शासन और प्रशासन की एक अनुपम विरासत से जुड़ा हुआ है, जिसकी मूल शक्ति उनकी लिखित भाषा, लेखा-जोखा और शासन कौशल में निहित थी। वे एक व्यवसायी वर्ग के रूप में उभरे, जिनकी भूमिका समय के साथ अपनी सामाजिक और राजनीतिक स्थिति को मजबूत करने वाले एक शक्तिशाली शासकीय वर्ग में विकसित हो गई। इस विरासत को समझने के लिए, उनकी भूमिका को विभिन्न ऐतिहासिक अवधियों - प्राचीन, मध्यकालीन और आधुनिक - के संदर्भ में विश्लेषित किया जाना चाहिए। गुप्त काल (320-550 ईस्वी) के दौरान, कायस्थों को एक महत्वपूर्ण प्रशासनिक वर्ग के रूप में स्थापित किया गया
। उन्हें राज्य यंत्र में शामिल किया गया और उन्हें 'प्रथम कायस्थ' (मुख्य लेखक) जैसी पदवियां दी गईं, जो उनकी ऊंची स्थिति को दर्शाती हैं । गुप्त साम्राज्य एक विस्तृत राज्य यंत्र और कठिन कर प्रणालियों के लिए जाना जाता था, और कायस्थों ने इसके आर्थिक प्रबंधन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई । उन्होंने राजाओं के आदेशों को दस्तावेजीकरण, करों का आकलन और भूमि-दान की प्रक्रियाओं का प्रबंधन किया । गुप्त काल के अभिलेखों में उनके उल्लेख से पता चलता है कि वे एक शक्तिशाली शासकीय वर्ग बन गए थे और अपनी शैली और शिक्षा के कारण ऊपरी जाति में उभरे
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मध्यकालीन भारत में, खासकर मुग़ल और ब्रिटिश काल के दौरान, कायस्थों की भूमिका और भी महत्वपूर्ण और अभिनव हो गई। मुग़ल काल के दौरान, वे पर्शवाचन में अद्वितीय थे और इसे तेजी से सीख लिया। वे मुग़ल प्रशासन में राजस्व कलेक्टरों (qanungos), जमींदारों (zamindars), और अन्य शासनिक पदों पर नियुक्त हुए
। राजा तोदरमल जैसे महान वित्त मंत्री जो कि कायस्थ माने जाते हैं, उन्होंने मुग़ल राजस्व प्रणाली की स्थापना की । वे अपने साथ उपन्यासों और साहित्य में भी योगदान दिया, जैसे शिवदास 'लखनवी' ने फारसी अखबार लिखा । ब्रिटिश काल के दौरान, ब्रिटिशों ने अपनी विशाल प्रशासनिक यंत्र के लिए कायस्थों की आवश्यकता महसूस की क्योंकि वे लिखित दस्तावेजों में अनुभवी थे और अंग्रेजी भाषा में निपुण थे । वे अपनी लिखित भू-रिकॉर्डिंग के कारण ब्रिटिशों के लिए अत्यंत मूल्यवान थे, विशेष रूप से उत्तर प्रदेश के विभाजन के बाद जब भू-रिकॉर्ड नष्ट हो गए थे । ब्रिटिश अधिकारियों ने कायस्थों को उनकी बुद्धिमत्ता, विनम्रता और गाँव में आधिपत्य के लिए सराहा । 1919 तक, कायस्थ उत्तर भारत में भारतीय सरकार के कानून के सदस्यों के दो-तिहाई हिस्से थे, विशेष रूप से उत्तर प्रदेश में
।
कायस्थों की विरासत का एक अन्य महत्वपूर्ण पहलू उनके द्वारा विकसित और उपयोग की गई एक विशिष्ट लिपि है, जिसे 'कैठी' लिपि कहा जाता है । यह लिपि उत्तर भारत, विशेष रूप से बिहार और उत्तर प्रदेश में, कायस्थों द्वारा अपने प्रशासनिक और वैयक्तिक दस्तावेजों के लिए विकसित की गई थी
। यह लिपि उनकी पहचान का एक महत्वपूर्ण हिस्सा थी । ब्रिटिश काल के दौरान, यह बिहार के कोर्ट में आधिकारिक लिपि थी, लेकिन बाद में विभिन्न कारणों से विस्थापित हो गई
। इस लिपि के उपयोग ने कायस्थों को अपने दस्तावेजों में एक विशिष्ट पहचान दी और उनके प्रशासनिक और सांस्कृतिक योगदान को दर्शाता है। कायस्थों ने अपने राजनीतिक और सामाजिक इतिहास में एक विशिष्ट स्थान बनाया है, जो उनकी शिक्षा, लिखित कौशल और शासन क्षमता पर निर्भर करता है। उनकी भूमिका ने भारतीय शासन के इतिहास को आकार देने में महत्वपूर्ण योगदान दिया है।
सामाजिक संरचना और विवादास्पद वर्ण पहचान
कायस्थ समुदाय की सामाजिक पहचान उनकी वर्ण व्यवस्था में एक विवादास्पद और अस्पष्ट स्थिति में है, जो ब्रिटिश उपनिवेशवाद और सामाजिक अभियानों के एक जटिल इतिहास से जुड़ी हुई है। यह स्थिति क्षेत्र के आधार पर भिन्नता दर्शाती है और ब्रिटिश उपनिवेशवाद के दौरान एक जटिल कानूनी और सामाजिक संघर्ष का अंतिम परिणाम थी। उत्तर भारत में, ब्रिटिश अदालतों ने उत्तर भारतीय कायस्थों को 'द्विज' (दो बार जन्मे) के रूप में वर्गीकृत किया, जो उन्हें क्षत्रिय या ब्राह्मण के समान दर्जा देता है
। इसका एक अंतिम निर्णय 1890 में अलाहाबाद हाई कोर्ट द्वारा दिया गया, जिसने उन्हें क्षत्रिय के रूप में वर्गीकृत किया । यह वर्गीकरण उनकी ऊंची सामाजिक स्थिति को मजबूत करने में मदद करता था। हालांकि, यह स्थिति बंगाल में अलग थी और उनके लिए एक बड़ा सामाजिक झटका थी। कैलाश काशीनाथ राय विरुद्ध बिसेशर दयाल केस (1884) में कलकत्ता हाई कोर्ट ने बंगाली कायस्थों को शूद्र के रूप में वर्गीकृत किया, जिसके कारणों में उनके द्विज अनुष्ठानों के अनुपालन की कमी शामिल थी । यह फैसला बंगाली कायस्थों के लिए एक बड़ा सामाजिक झटका था और उन्हें अपनी ऊंची सामाजिक स्थिति को साबित करने के लिए एक लंबी सामाजिक लड़ाई लड़नी पड़ी। महाराष्ट्र में, छंद्रसेनिया कायस्थ प्रबु (CKP) को आधिकारिक रूप से क्षत्रिय माना जाता है, जिसे राज्य द्वारा स्वीकृति मिली है
।
ब्रिटिश उपनिवेशवाद ने कायस्थों के लिए एक विशेष चुनौती पैदा की। अदालती मुकदमों के दौरान, उन्हें अपनी ऊंची सामाजिक स्थिति को साबित करने के लिए अपने वर्ण की पुष्टि करनी थी
। इस दबाव के जवाब में, कायस्थ समुदाय ने एक सामाजिक सुधार आंदोलन शुरू किया। उन्होंने अपने अनुष्ठानों को मजबूत किया, जैसे कि उन्हें ब्राह्मणों के समान ब्राह्मणीय अनुष्ठानों को अपनाना शुरू कर दिया । वे अपनी सामाजिक छवि को सुधारने के लिए अपने खान-पान के नियमों को भी बदलने की कोशिश कर रहे थे, जैसे कि मांसाहार और शराब के सेवन को कम करना । इसमें एक महत्वपूर्ण तत्व ताम्प्रसाद आंदोलन भी था, जो शराब के विरुद्ध था । इस प्रकार, ब्रिटिश उपनिवेशवाद ने कायस्थों के लिए एक विशेष चुनौती पैदा की। अदालती मुकदमों के दौरान, उन्हें अपनी ऊंची सामाजिक स्थिति को साबित करने के लिए अपने वर्ण की पुष्टि करनी थी । इस दबाव के जवाब में, कायस्थ समुदाय ने एक सामाजिक सुधार आंदोलन शुरू किया। उन्होंने अपने अनुष्ठानों को मजबूत किया, जैसे कि उन्हें ब्राह्मणों के समान ब्राह्मणीय अनुष्ठानों को अपनाना शुरू कर दिया । वे अपनी सामाजिक छवि को सुधारने के लिए अपने खान-पान के नियमों को भी बदलने की कोशिश कर रहे थे, जैसे कि मांसाहार और शराब के सेवन को कम करना । इसमें एक महत्वपूर्ण तत्व ताम्प्रसाद आंदोलन भी था, जो शराब के विरुद्ध था
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कायस्थ समुदाय की सामाजिक संरचना उनकी उप-जातियों और शाखाओं पर आधारित है, जो उनके विभिन्न क्षेत्रों में उनकी विशिष्ट स्थिति को प्रभावित करती है। उत्तर भारतीय चित्रगुप्तवंशी कायस्थों के द्वादश शाखाएँ हैं, जिनमें स्रिवास्तव, सक्सेना, भट्टनागर, अम्बाष्ठा, आस्थाना आदि प्रमुख हैं
। बंगाली कायस्थों का विभाजन अलग है; वे दो मुख्य श्रेणियों में विभाजित हैं: कुलिन (उच्च श्रेणी) और मौलिक (मूल) । कुलिन कायस्थों को उनकी उच्च सामाजिक स्थिति के लिए जाना जाता है, जो उनके कुलिनवाद की प्रथा से जुड़ी है, जिसमें उनकी उत्पत्ति का दावा कन्नौज से किया जाता है । छंद्रसेनिया कायस्थ प्रबु (CKP) महाराष्ट्र के कायस्थ समुदाय का एक विशिष्ट समूह है, जो युद्धकुशल क्षत्रियों के वंशज होने का दावा करते हैं और वे उपनयन जैसे ब्राह्मण अनुष्ठान करते हैं, जो उनकी अलग पहचान को दर्शाता है । ओडिशा में, कायस्थों को कारन के रूप में जाना जाता है और वे ब्राह्मणों के बाद सबसे ऊंची जाति माने जाते हैं
। ये विभिन्न समूह और उप-जातियाँ भारत के विभिन्न हिस्सों में अपनी अनोखी पहचान और संस्कृति बनाए हुए हैं, जो कायस्थ समुदाय की विविधता को दर्शाती है। इस प्रकार, कायस्थ समुदाय की सामाजिक संरचना एक जटिल और विवादास्पद विषय है, जो उनके वर्ण पहचान, ऐतिहासिक संघर्ष और विभिन्न क्षेत्रों में उनकी विशिष्ट स्थिति को दर्शाती है।
शिक्षा, सांस्कृतिक पहचान और आधुनिक जीवन
शिक्षा कायस्थ समुदाय की सबसे मजबूत विशेषता है और उनकी सामाजिक उपलब्धियों का मूल आधार है। इसका उद्गम उनके व्यवसाय के रूप में लेखन और लेखा-जोखा की आवश्यकता में है, जिससे उन्हें शिक्षा को अत्यंत महत्व देना पड़ा
। यह उनकी जीविका का मूल आधार था और इसने उन्हें एक शिक्षित और शिक्षाविद समुदाय बना दिया। इस शिक्षा-केंद्रित संस्कृति का इतिहास लंबा है। ब्रिटिश शासन के दौरान, कायस्थ भारत में सबसे अधिक शिक्षित जाति थी। 1931 की जनगणना में, उत्तर प्रदेश में पुरुषों में 70.2% और बिहार और उड़ीसा में 60.5% कायस्थ शिक्षित थे, जो ब्राह्मणों और अन्य जातियों से काफी अधिक था । यह उनकी सामाजिक और आर्थिक स्थिति को सुदृढ़ बनाने में मदद की। इस ऐतिहासिक शिक्षा की प्राथमिकता ने आज भी कायस्थ समुदाय की संस्कृति को आकार दिया है। आज भी वे विभिन्न क्षेत्रों में उच्च शिक्षा प्राप्त करने और प्रमुख पेशों में शामिल होने में उत्कृष्ट हैं, जैसे कि वकालत, चिकित्सा, इंजीनियरिंग, शिक्षा और सरकारी सेवा
।
कायस्थ समुदाय की सांस्कृतिक पहचान उनके खान-पान, सामाजिक अभ्यास और लोक कला में अपनी विशिष्टता दर्शाती है। वे अक्सर ब्राह्मणों और क्षत्रियों के विपरीत हैं; मांसाहार और शराब का सेवन आम है, जिसका उनके देवता चित्रगुप्त के प्रिय होने से संबंध है
। यह प्रथा उनके विशिष्ट सांस्कृतिक पहचान का एक हिस्सा है और उन्हें अन्य ऊपरी जातियों से अलग करती है। उनके खान-पान में मांसाहार शामिल है, जो उनके शासकीय और सामाजिक इतिहास के साथ जुड़ा है । उनके सामाजिक जीवन में, वे अपने व्यवसाय के कारण अपने आस-पास की जातियों से अधिक बातचीत करते थे, जिससे उनमें एक समझदार और खुले दिमाग का व्यक्तित्व विकसित हुआ । यह उन्हें भारत के विभिन्न संस्कृतियों के साथ एकीकृत रहने में सक्षम बनाता है। उनकी सांस्कृतिक पहचान उनके अनुष्ठानों, जैसे चित्रगुप्त पूजा, और उनके विशिष्ट उत्सवों में भी दर्शाई जाती है, जो उनकी पहचान को दृढ़ करते हैं
।
आधुनिक जीवन में, कायस्थ समुदाय अपनी पहचान को बनाए रखने के लिए अपने स्थानीय संगठनों, जैसे कि कायस्थ सभा और कायस्थ महासभा, का उपयोग कर रहा है
। ये संगठन शैक्षणिक और सामाजिक कार्यक्रमों को संचालित करते हैं और सामाजिक बंधन को बनाए रखते हैं । वे अपने सांस्कृतिक विरासत को बनाए रखने के लिए संघर्ष कर रहे हैं, जैसे कि अपने खान-पान के नियमों को बनाए रखना और अपने उत्सवों का आयोजन करना । वे अपने आदर्शों के साथ आधुनिकता का संतुलन बनाने में कठिनाई महसूस कर रहे हैं। उदाहरण के लिए, वे अपने शिक्षा-केंद्रित संस्कृति के लिए जाने जाते हैं, लेकिन व्यापार और उद्यमिता में कमजोर हैं । इसके अलावा, वे अपने व्यवसाय के कारण अपने आस-पास की जातियों से अधिक बातचीत करते थे, जिससे उनमें एक समझदार और खुले दिमाग का व्यक्तित्व विकसित हुआ
। यह उन्हें भारत के विभिन्न संस्कृतियों के साथ एकीकृत रहने में सक्षम बनाता है। इस प्रकार, कायस्थ समुदाय एक विविध और जटिल संरचना रखता है, जो उसकी शक्ति और जटिलता को दर्शाती है।
वर्तमान स्थिति: आर्थिक समृद्धि और राजनीतिक अस्थिरता
आज, कायस्थ समुदाय एक जटिल और विरोधाभासी स्थिति में है। वे शिक्षा और प्रशासन में अपनी शक्ति बनाए हुए हैं, लेकिन राजनीतिक और आर्थिक शक्ति में उनकी स्थिति में गिरावट आई है। वे भारत के सबसे समृद्ध और शिक्षित जातियों में से एक माने जाते हैं। एक 2018 के सर्वेक्षण में 57% कायस्थ अमीर वर्ग में शामिल थे, जो उनकी आर्थिक स्थिति को दर्शाता है
। बिहार में एक कस्बा-आधारित सर्वेक्षण के अनुसार, वे सबसे समृद्ध ऊंची जाति थे, जिसका केवल 13.38% गरीब था । इस आर्थिक समृद्धि के बावजूद, कायस्थ समुदाय सरकार द्वारा वर्गीकृत किए गए 'उन्नत जाति' (Forward Caste) हैं और आरक्षण के लिए पात्र नहीं हैं, जो वर्तमान भारतीय राजनीति में एक बड़ा बिंदु है
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हालांकि, कायस्थों की सबसे बड़ी चुनौती उनकी राजनीतिक अस्थिरता है। भारत के स्वतंत्रता के बाद, कायस्थों ने सरकारी सेवाओं में अपनी शक्ति खो दी है। इसका एक परिणाम राजनीतिक प्रतिनिधित्व में गिरावट है। 1952 में उत्तर प्रदेश विधानसभा में 52 कायस्थ विधायक थे, लेकिन 2012 तक यह संख्या कम होकर कम से कम 5 पर आ गई थी
। बिहार में भी यह अंतर चिंताजनक है, जहां पहली विधानसभा में 52 कायस्थ MLAs थे, जो 2010 के आसपास तीन पर गिर गए । यह गिरावट मंडल आयोग की रिपोर्ट (1990) और आरक्षण के बाद बढ़ते निचले जाति के राजनीतिक असर के कारण हुई है, जिससे ऊंची जातियों की पारंपरिक राजनीतिक शक्ति को चुनौती दी गई
।
कायस्थों को राजनीतिक रूप से अदृश्य बनाने के पीछे कई कारण हैं। वे एक छोटी आबादी हैं, वे विभिन्न राजनीतिक विचारधाराओं में फैले हुए हैं और वे अक्सर 'तर्क-आधारित' मतदाता होते हैं, जिससे उन्हें एक एकीकृत मतदाता बैंक के रूप में उपयोग करना मुश्किल हो जाता है
। यह उन्हें राजनीतिक रूप से अदृश्य बना देता है, भले ही वे राष्ट्रीय स्तर पर नेता पैदा करते रहें। राजनीतिक दलों को अक्सर उनकी राजनीतिक उपेक्षा का अहसास होता है, जैसा कि उत्तर प्रदेश में बीजेपी के नेताओं के बीच उनकी बढ़ती नाराजगी के कारण हुआ । इसके अलावा, उनकी राजनीतिक प्रतिनिधित्व में गिरावट उनकी सामाजिक शक्ति को भी प्रभावित करती है, क्योंकि राजनीतिक शक्ति आर्थिक और सामाजिक शक्ति का एक महत्वपूर्ण स्रोत है। उदाहरण के लिए, ओडिशा में कायस्थों की राजनीतिक प्रभुत्व का एक उदाहरण राजनीतिक शक्ति के महत्व को दर्शाता है। ओडिशा में, बीजेडी परिवार ने लगभग चार दशकों तक राज्य के मुख्यमंत्री के रूप में शासन किया है, जो एक बार फिर उनकी शासन क्षमता को दर्शाता है
। यह दर्शाता है कि कायस्थों की राजनीतिक शक्ति कितनी महत्वपूर्ण हो सकती है, जब वे एकजुट होते हैं।
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उत्तर प्रदेश (विधानसभा) |
52 |
< 5 |
तीव्र गिरावट |
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बिहार (विधानसभा) |
52 |
3 |
तीव्र गिरावट |
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जम्मू और कश्मीर (विधानसभा) |
0 |
0 |
अपरिवर्तित |
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मध्य प्रदेश (विधानसभा) |
1 |
1 |
अपरिवर्तित |
इस प्रकार, कायस्थ समुदाय एक जटिल स्थिति में है। वे आर्थिक रूप से समृद्ध हैं और शिक्षा के क्षेत्र में उत्कृष्ट हैं, लेकिन उनकी राजनीतिक प्रतिनिधित्व और शक्ति में गिरावट आई है। उनका भविष्य उनकी क्षमता पर निर्भर करता है कि वे अपनी विविधता को एक सामाजिक और राजनीतिक इकाई में कैसे बदलते हैं और भारत के आगे बढ़ते और बदलते हुए इतिहास में अपनी भूमिका को कैसे निर्धारित करते हैं।
चुनौतियाँ, प्रमुख व्यक्तित्व और भविष्य की ओर
कायस्थ समुदाय को आज भी ऐतिहासिक रूप से कई चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है, जिनमें से सबसे महत्वपूर्ण उनकी पहचान, सामाजिक स्थिति और राजनीतिक प्रभाव को बनाए रखने की चुनौती है। उनकी सबसे बड़ी चुनौती उनकी विविधता और उप-जातियों के बीच की खाई को पाटना है। भारतीय राजनीति में जाति-आधारित मोबाइलाइजेशन के दौरान, कायस्थों ने अक्सर अपने विशिष्ट राजनीतिक इकाई को बनाए रखने में कठिनाई महसूस की है
। उनकी राजनीतिक उपेक्षा का एक कारण यह भी है कि उनकी आबादी छोटी है और वे विभिन्न राजनीतिक विचारधाराओं में फैले हुए हैं । इसके अलावा, वे एक 'तर्क-आधारित' मतदाता के रूप में जाने जाते हैं, जो उन्हें राजनीतिक दलों के लिए एक एकीकृत मतदाता बैंक के रूप में उपयोग करना मुश्किल बनाता है । इसके अलावा, वे अपने व्यवसाय के कारण अपने आस-पास की जातियों से अधिक बातचीत करते थे, जिससे उनमें एक समझदार और खुले दिमाग का व्यक्तित्व विकसित हुआ । यह उन्हें भारत के विभिन्न संस्कृतियों के साथ एकीकृत रहने में सक्षम बनाता है। उनकी सबसे बड़ी चुनौती उनकी विविधता और उप-जातियों के बीच की खाई को पाटना है। भारतीय राजनीति में जाति-आधारित मोबाइलाइजेशन के दौरान, कायस्थों ने अक्सर अपने विशिष्ट राजनीतिक इकाई को बनाए रखने में कठिनाई महसूस की है । उनकी राजनीतिक उपेक्षा का एक कारण यह भी है कि उनकी आबादी छोटी है और वे विभिन्न राजनीतिक विचारधाराओं में फैले हुए
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